About Bhootni ki Kahani
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Bhootni ki Kahani
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पुराने शहर के बाजार में छिपी, एक सुनसान सी दुकान थी। उसकी धूल-धूसरित खिड़कियों से कभी-कभी आहटें सुनाई देतीं, कुछ हल्की फुसफुसाहटें गूंजतीं। लोग उसे “मोतियों वाली साड़ी की भूतनी” की दुकान कहते थे। वहां किसी जमाने की खूबसूरत सी साड़ियां लटकी रहतीं, जिन पर मोतियों की कतारें चमकतीं।
रात की ख़ौफ़नाक तन्हाई और सन्नाटा दूर दूर तक फैला हुआ था!! आसमान बिल्कुल कोरा पड़ा था!
"हॉरर फेस्टिवल - भय का उत्सव" पवनेश मिश्रा
अनीता समझ गई। भूतनी ने उसे चुना था, ज्ञान का उत्तराधिकारी। दुकान से बाहर निकलते हुए, उसने पीछे मुड़कर देखा। खिड़कियां चमक रही थीं, मानो कहानियां अंधेरे को हरा रही हों।
फिर, वह आवाज सुनाई दी। एक फुसफुसाहट, हवा में घुलती हुई, शब्दों से ज्यादा एक भाव – “मेरी कहानी लिखो।”
इतिहास की गूंजती सन्नाटा: भूतनी अक्सर उन कहानियों की नायिका होती हैं जो इतिहास की किताबों में नहीं लिखी गईं। वो महलों की रानियां होती हैं, जिनका प्रेम छलावा बना, कलाकार जिनकी कला को भुला दिया गया, या आम औरतें जिनकी जिंदगी अन्याय का शिकार हुई। भूतनी उनकी आवाज बनती है, इतिहास के सन्नाटे को चीरती है, हमें अतीत के पहलुओं को नए नजरिए से देखने को मजबूर करती है।
दिल की धड़कन को दबाकर, रामू ने धीरे से दरवाजा खोला। अंदर, आधी रात का म्यूजियम एक अलग ही रंग में नहाया हुआ था। चांदनी ने चित्रों को जीवंत कर दिया था, प्राचीन वाद्य यंत्र खुद-ब-खुद बज रहे थे, और हवा में संगीत का जादू घुल चुका था।
राहुल ने सुमित्रा की कहानी को पेंटिंग में उतारा। एक हंसमुख महिला, पहाड़ों के बीच हवा में तैरती। वो पेंटिंग इतनी खूबसूरत थी कि देखने वाले सिहर जाते थे, खुशी से!
और इस तरह, सोनू और चुड़ैल दोस्त बन गए। चुड़ैल सोनू को हर दिन उसके सवालों के जवाब देती, उसे दुनिया के बारे में सिखाती, और उसे उसकी ज़िंदगी जीने में मदद करती।
रामू ने पेड़ को काटकर आग में डाल दिया। आग बहुत तेज थी। रामू ने आग से कुछ सोना निकाला। रामू बहुत खुश हुआ। उसने सोना बेचा और एक अच्छी सी जमीन खरीदी।
साध्वी अब भी पेड़ के नीचे होती, लेकिन डर का नहीं, कृतज्ञता का साया छाया रहता था। पेड़ ने उसे घर दिया, और उसने पेड़ को जिंदगी। लैला और उसके दोस्तों ने सीखा कि कभी-कभी, भूत कहानी सिर्फ एक झूठ होती है, जो असल में किसी दयालु आत्मा के प्यार को छिपाए रखती है।
भूतनी की कहानी सिर्फ मनोरंजन नहीं है, ये एक सांस्कृतिक अनुभव है। ये हमें डराती है, सोचने पर मजबूर करती है, इतिहास से जोड़ती है, और कल्पना की उड़ान भरने का मौका देती है। यही वजह है कि ये कहानियां पीढ़ियों से जीवित हैं, और आने वाले समय में भी अपना जादू बिखेरती रहेंगी।